उत्तराखण्ड में सरकार, विपक्ष और मीडिया के लिए मुद्दों का लगातार टोटा बना हुआ है। इसीलिए 15 साल में पहाडों के गांव खाली होने, मैदानी कृषि पर आवासीय व्यवस्था का बोझ बढने और खेत-खलिहानों के बंजर होने सहित तमाम समस्याओं के बजाय सतही मुद्दे उछालने और उसी बहस को लगातार परोसने, बनाये रखने में किसका हित है क्या कोई बतायेगा?
एक निरीह जानवर जिसे शक्तिमान कहा जा रहा है पुलिस स्कैडन का कांस्टेबल दर्जे का घोडा है जिसे भारतीय जनता पार्टी के 14 मार्च को हुए विधान सभा घेराव के दौरान विधायक गणेश जोशी द्वारा लाठी से पिटने के बाद पैर टूटने की बात कही जा रही है। एक निरीह जानवर के साथ बर्बरता की कठोर शब्दों में निंदा होनी चाहिए। कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभाले पुलिस को उस पर एफआईआर मिल चुकी है और उसे सम्यक कार्यवाही करनी चाहिए।
सवाल घोडे के दर्द और जान से अधिक सत्ता के लिए तिकडमी चालों का है।उत्तराखण्ड के उन मुद्दों को लेकर हैं जिन पर सरकार और विपक्ष आंख मंद लेता है। मीडिया को काठ मार जाता है। जिस घोडे पर सरपट सवारी का मोह कोई संबरण नही कर पा रहा वह उत्सुकता 23 जनवरी को उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध आन्दोलनकारी पीसी तिवारी व रेखा धस्माना को जिन्दल के गुण्डो ंद्वारा पीटे जाने के समय कहां गयी थी? प्रभात ध्यानी और मुनीश अग्रवाल पर खनन माफिया द्वारा किया गया जान लेवा हमला पक्ष-विपद्वा की तकरीर नही बनती। स्वतंत्रता सेनानी 94 वर्षीय बुजर्ग देवेन्द्र सनवाल और तिरंगे का अपमान उन्हें विचलित नही करता। सडक से सदन तक हंगामा मचाने वाले लोग क्या जिन्दल के बंधक हैं जो उसके उसके कुकृत्यों पर मौन साध लेते हैं?
व्ीर माधोसिंह मलेठा की कर्मभूमि को बंजर बनने से रोकने की मुहिम लिए हिमालय बचाओ आन्दोलन के नेता समीर रतूडी 23 दिन से अनशन पर हैं उनकी मांग आन्दोलनकारियों से मुकदमे हटाने की है। लेकिन सरकार और विपक्ष पहाड क ेजल-जंगल-जमीन के सौदों पर न केवल खामोश हैं बल्कि वे किसी न किसी रुप में माफिया को सहयोग कर रहे हैं।
कांग्रेस हो या भाजपा और उनका दुमछल्ला उत्तराखण्ड का वह दलाल मीडिया जिसे बेगुनाह युवाओं की माओवादी के रुप में गिरफ्तारी सरकार की सबसे बडी बहादुरी लगती है और वह पन्ने दर पन्ने, एपीसोडदर एपीसोड उत्तराखण्ड में माओवाद के पसरने और सरकार बहादुर की बहादुरी के किस्सों से धन्य-धन्य होता है। जबकि न्यायालय में एक भी मामला नही टिकता है और सभी गिरफ्तार युवा रिहा हो जाते हैं। 80 के दशक में कोटखर्रा में भूमिहीनों की लडाई लडते उत्तराखण्ड संघर्ष वाहिनी के कार्यकर्ताओं की पिटाई किस किस राजनेता को याद है? बिन्दुखत्ता मे ग्रामीणों के हक-हकूक को लेकरं सीपीआई एमएल कार्यकर्ताओं पर कितनी बार लाठी चार्ज हो गया क्या किसी मीडिया ने हिसाब रखा है?छोटी काशी हाट को बचाने के लिए वहां ग्रामीण आन्दोलित हैं लेकिन उनकी परवाह किसी को नही।
तीन दिन से चल रही बहस और समाचार केवल एक लाइन में सिमटने चाहिए थे दोषी के खिलाफ कार्यवाही और घोडे को समुचित इलाज। लेकिन मुद्दों की राजनीति से परहेज रखने वाले कांग्रेस और भाजपा के लिए तो कुर्सी और केवल कुर्सी ही पहली और अंतिम प्रारथमिकता है। वह चाहे घोडे या गधे पर सवार होकर ही क्यों न आये। उत्तराखण्ड की परिकल्पनाऐं, शहीदों के सपने तो जिन्दल, शराब, खनन व भू माफिया के यहां गिरवी रख चुके हैं। तब तिरंगे का अपमान भी हो तो उन्हें काठ मार तायेगा।
मुख्यमंत्री जी! शक्तिमान के साथ फोटो ख्ंिाचाकर जिस राजनैतिक लाभ में आप अपने को पा रहे हैं जिन्दल से नजदीकी और नैनीसार के हमलावरों की गिरफ्तारी रोकना आपको उससे भी महंगा पडने वाला है।
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