लोक कवि, गायक और उत्तराखण्ड के मर्मज्ञ नरेन्द्रसिंह नेगी की नौछमी नारायण में एकपद है -‘निचिन्त ह्वे के से गिनी----‘ यह सरकार के पदों पर विराजमान महानुभावों की कार्य शैली पर है। दो महिने में प्रदेश की दो हडतालों पर सरकारी गूंगा-बहरापन माननीय उच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी लगता नही टूटा है, हां हडताल पर कोर्ट का चाबुक हडताल तोडने को विवश जरुर कर गया।
दिसम्बर में एक मरीज को हल्द्वानी के एक प्राइवेट अस्पताल में उनके परिजन लाते हैं और कुछ घंटे में वह मर जाता है, चिकित्सक परिजनों को कोई संतोषजनक जबाब नही दे पाते और वहां तोड फोड और चिकित्सकों की पिटाई हो जाती है। तुरन्त प्राईवेट अस्पताल हडताल कर देते हैं तीन दिन प्राईवेट अस्पतालों की हडताल में सरकारी डाक्टर भी कूद पडते है। और भगवान के बाद किसी मरीज को बचाने की जिम्मेदारी लिए डाक्टरों का गैरजिम्मेदारानापन सामने आता है। मरीजों को देखने के लिए न प्राइवेट अस्पताल होते है और न सरकारी।
माननीय उच्च न्यायालय में जन हित याचिका पर कोर्ट हडताली डाक्टरों को 20 मिनट में काम पर लौटने का आदेश होता है और हडताली दुम दबा कर काम पर लौट आते हैं।
कोषागार कर्मी सचिवालय के कोषागार कर्मियों के समान ग्रेड-पे देने की मांग पर पिछले 40 दिनों से हडताल पर हैं। कोषागारों पर ताले लटके हैं और वेतनभोगियों, पेंशनरों को वेतन व पेंशन के लाले पडे हैं, स्टाम्प नही मिलने से राजस्व का नुकसान हो रहा है और वित्त काम लगभग ठप्प हो जाता है। ऐसे में एक जनहित याचिका दायर होती है और न्यायालय से 3 दिन में हडताल समाप्त करने के आदेश होता है।
ये तो रही हडताल और न्यायालय की बात। लेकिन सरकार जिस पर व्यस्था की जिम्मेदारी है एक कान तेल और दूसरे कान में घी डालकर कैसे सो जाती है उसका उदाहरण ये दो हडताल है। निजी चिकित्सालयों में मरीज और उसके परिजनों को इलाज के नाम पर लूटने की छूट यही सरकार देती है, वह चाहे किसी पार्टी की हो। किसी की जायज मांग को सुनना सरकार और उसके भ्रष्ट नौकरशाह अपनी तौहीन समझते हैं गोया वे जनता के सेवक नही शासक हों। आप सचिवालय में जो वेतनमान, ग्रेड पे या दूसरी सुविधायें दे रहे हैं और कर्मियों का क्यों नही मिलना चाहिए?
महत्वपूर्ण तथ्य तो यह है कि 40 दिनों में जनता परेशान रही और सरकारी -गैरसरकारी कार्य प्रभावित हुए और सरकार की तन्द्रा टूटी नहीं, राज्यपाल जो हर छोटी-बडी खबर केन्द्र सरकार को भेजते हैं जनता को होने वाली परेशानी पर सरकार को तलब क्यों नही करते? घोषणाओं और घोटालों की राजनीति का अंत होना चाहिए और जनता को अपनी सोच में बदलाव लाना चाहिए कि सरकार और नौकरशाह हमारे शासक नहीं सेवक है और उन्हें उनकी हद भी बतानी होगी।
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