Friday, January 8, 2016

उत्तराखण्ड की बागडोर उसकी परिकल्पना के जनकों को सौंपें, राज्य परिकल्पनाओं की ओर बढता दिखेगा

  
            हरिद्वार के पंचायत चुनाव में कांग्रेस भाजपा का पिछडना किसी भी रुप में आश्चर्यजनक नही है 47 सदस्यीय जिला पंचायत में सबसे अधिक 17 निर्दलीय  चुनकर आये हैं जबकि बसपा 16 सबसे बडी पार्टी है, कांग्रेस 11 व भाजपा कुल 3 पर सिमट गयी है। हरिद्वार के पंचायत चुनाव का महत्व इसलिए भी है कि वहां से सर्वाधिक 11 विधायक विधान सभा में आते हैं और वर्तमान में भाजपा के 5, कांग्रेस के 4 व बसपा के 2 विधायक विधान सभा में हैं। यदि जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की चर्चा करें तो निर्दलियों के दम पर प्रदेश सरकार मेें काविज कांग्रेस का अध्यक्ष बनना तय माना जा सकता है। 
            यह कितनी बडी विडम्बना है कि राज्य गठन के 15 साल बाद भी उत्तराखण्ड के 12 अन्य जनपदों के साथ हम हरिद्वार का चुनाव नही करा पाये हैं और उसके पंचायत चुनाव उ प्र के समयावधि में हो रहे हैं। हरिद्वार को उत्तराखण्ड के अन्य जिलों के साथ पंचायत चुनाव न कराना राज्य में दोहरी व्यवस्था सरीखा है। विडम्बना तो यह है कि जिन जिलों को उत्तराखण्ड राज्य की कोई दरकार थी ही नही वहां अब आवादी का सवाल उठ रहा है और हमारे सांसदों की सारस्वत चुप्पी के चलते उत्तराखण्ड के पहाडी जिले 85 प्रतिशत  भू-भाग के बावजूद जनसंख्या के परिसीमन में  6 विधान सभा सीटें गवां बैठे। हमारे सांसदों को संसद में वस्तु स्थिति रखनी चाहिए थी जिससे परिसीमन में क्षेत्रफल भी मानक होता। 
             गढवाल संसदीय क्षेत्र 5 जिलों पीरुमदारा से नीती-माण और मुनि की रेती तक फैला है और अल्मोडा 4 जिलों मोहान से धारचूला मुनस्यारी तक, जब चुनाव प्रचार के लिए कोई प्रत्याशी मतदाता की चैखट नही देखता तो जीतने के बाद का बादशाह क्या खाक मतदाता का ख्याल रखेगा। दुभाग्य ये भी है कि वे लोग राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस व भाजपा के बडे नेता हो गये हैं जिनका उत्तराखण्ड राज्य अवधारणा से कोई लेना-देना था ही नही उल्टे वे राज्य के विरोध में थे लेकिन वही लोग आज गैरसैंण राजधानी के सवाल जल भुन रहे हैं।
              15 सालों में उत्तराखण्ड को नौकरशाही ने बहुत बूरी तरह तहस-नहस किया है और उसमें नालायक राजनेताओं की पूरी-पूरी भागीदारी है। उत्तराखण्ड का अपना पंचायत कानून नही बना। हम हम रोजगार और शिक्षा की नीति नही बना पाये। लोकपाल और स्थान्तरण कानून पर पांव इसलिए पीछे खींचे कि उसका श्रेय पूर्ववर्ती सरकार को न जाय। कभी ऊर्जा, कभी पर्यटन  कभी जैविक और भी न जाने क्या बकवास हमारे नेता करते रहे और नौकरशाह उन्हें नचाते रहे, प्रदेश और जनता बरबाद होती रही , गांव खाली हो गये, नेता भी पलायन करने लगे।
            पहाडों के गांव केवल गांव नही हैं वे देश की सरहद के रखवाले है, वे गंगा-जमुना, काली, सरयू और रामगंगा के जल के रक्षक और उससे स्वयं रक्षित हैं। वे हिमालय और हिमालय की छाती के जंगलों को पीढियों से पाल पोस और विकसित कर रहे हैं। फिर भी उनपर गुर्राने का अधिाकार हरभजन चीमा रखते हैं, इंदिरा हृदयेश उनकी भाग्य विधाता है और उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन की काट उधमसिंह नगर बचाओ के नेता हैं। अनंतकुमार सिेह व बुआसिंह को प्रोन्नति देने वाले दल और उनके सारथी-महारथी हैं, और हैं मुज्फ्फरनगर के रामपुर तिराहे के लुटेरे-हत्यारे हैं। किन-किन को कहे हमने सत्ता ही लाश पर उत्तराखण्ड बनाने वालों को सौंप दी।
          उत्तराखण्ड की एक बडी विडम्बना यह भी है कि हर कोई उत्तराखण्ड का विशेषज्ञ है और महाज्ञाता है, उससे अधिक दूसरे को कुछ नही आता अथवा वह विरोधी है। क्या भाग्य लेकर आये उत्तराखण्ड? जहां विकल्प नही है। सांपनाथ और नागनाथ के बीच का चुनाव है। विकल्प हम चुनने को तैयार हैं नही। हमारे लिए शमशेरसिंह बिष्ट आदर्श हो सकते हैं, शेखर पाठक उत्तराखण्ड के विद्वान हो सकते हैं, त्रेपनसिेह चैहान और चेतना आन्दोलन के कार्यों की प्रशंसा हो सकती, पी सी तिवारी और उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी के संघर्षों की चर्चा हो सकती है, उत्तराखण्ड क्रांति दल काशीसिंह ऐरी, त्रिवेन्दं पंवार या दिवाकर भट्ट को पानी पी-पी कर कोसा जा सकता है लेकिन राज्य प्राप्ति के उनके संघर्ष की अनदेखी होती है। उन्हें नेता नही मान सकते, सत्ता नही सौंप सकते।
            सन् 1974 में यह कितनी बडी परिकल्पना रही होगी जब उत्तराखण्ड के चार युवाओं ने अस्कोट-आराकोट(उत्तराखण्ड के पूर्व से पश्चिम) की पद यात्रा का निणर््य लेकर गढवाल कुमांऊ के स्थपित भ्रमों को दूर किया था और दिया था उत्तराखण्ड का कांसेप्ट। तब ऐसे थिंकर के हाथ हमें उत्तराखण्ड की बागडोर सौंपने में परहेज क्यों होता है? हमारे सोच में कहीं न कहीं उत्तराखण्ड को, उसके दीर्घकालिक हितों को समझने की कमी रही है और ये कमी जिस दिन पूरी होगी उत्तराखण्ड अपनी परिकल्पनाओं की ओ बढता दिखेगा।         

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