उत्तराखण्ड में सडकों की हालत बहुत खस्ताहाल है लगता है विश्व बैंक और एशिया बैंक का ऋण पीढियों तक चुकाने की कीमत पर उत्तराखण्ड में लूट मची हुई है। रविवार को निजी संवेदना व्यक्त करने हेतु मानिला अल्मोडा जाना हुआ। गैरसैंण से चैखुटिया का राष्ट्रीय राजमार्ग हो या चैखुटिया-मासी प्रान्तीय मार्ग, मासी - जैनल अथ्वा जैनल-मानिला मोटर मार्ग सब जगह ठेकेदारों की मनमानी है स्भी स्थानों पर लोकल रेत, रोडी और पत्थर लग रहे हैं, ऐसी जगहों पर रिटर्निंग वाॅल या कलमठ बन रहे हैं जिन्हें सामान्य जन भी कहेगा कि इसकी आवश्यकता क्या है?
चैखुटिया और मासी के बीच 13 किमी मार्ग तो मानो यात्रियों, स्थानीय जनता, चालकों और वाहन स्वामियों के लिए किसी सजा से कम नही है। ये सडक विभाग, नेता और ठेकेदारों के लिए कामधेनु से कम नहीं हैं। पिछले 40 सालों से हम इस मोटर मार्ग को देख रहे हैं और कभी भी उसकी हालत अच्छी नही रही है। 13 किमी का सफर तय करने में एक घंटा लग रहा है। वाह रे विभाग और उसकी निर्माण ऐजेन्सी।मासी और केदार के बीच काम कर रही ऐजेन्सी के पत्थर खुदान, टैक्टर में भरने और उतारने के बीच कोई वाहन आये तो उसकी बला से वह तो तब रास्ता देगा जब उसका टैक्टर भरेगा, खाली होगा और मजदूर सडक से पत्थर हटायेंगे।
लोकल पत्थर, लोकल बजरी, लोकल रोडी फिर भी ढुलान गौला और कोसी का, लूट मची है। कई जगहों पर सडक के उपर इसलिए जेबीसी से खुदान हुआ कि पत्थर निकालने हैं। मलवा वही पडा है। लगता नही कोई व्यवस्था है, लगता नही वहां कोई प्रशासन है और लगता नही कि कोई प्रतिनिधि है।
उत्तराखण्ड के पास संसाधन नही हैं। कर्ज से काम चल रहा है, सरकार और नेतागिरी भी। भावी पीढी को नेता, अफसर और ठेकेदारों की लूट से कर्ज के बोझ में दबाना कितना जायज है? ये दुरुपयोग है, निर्माण कम्पनियां भी शायद उत्तराखण्ड की नही हैं, उस लूट में सरकार और मंत्रियों का कितना हिस्सा है कह नहीं सकते और समय आने पर शायद साफ भी हो लेकिन तय है कि उत्तराखण्ड के हालात किसी भी स्थिति में अच्छे नही हैं।
No comments:
Post a Comment