Sunday, January 24, 2016

नैनीसार- निर्णायक जंग के ऐलान का समय उपपा अध्यक्ष पर हमला उत्तराखण्ड को चुनौती

पुरुषोत्तम असनोड़ा
गैरसैंण, 24 जनवरी, अल्मोडा जिले के द्वारसों नैनीसार में उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी केन्द्रीय अध्यक्ष पी सी तिवारी पर हुआ हमला उत्तराखण्डी अवधारणाओं को मिली चुनौती के रुप में लिया जाना चाहिए।नैनीसार में जिन्दल ग्रुप के हिमांशु एजूकेशनल सोसायटी को बिना औपचारिकता पूरी किए 353 नाली भूमि आवंटित कर मुख्यमंत्री द्वारा उद्घाटन सरकार और जिन्दल ग्रुप की मिली भगत के लिए पर्याप्त है।
   23 जनवरी को नैनीसार में जिन्दल ग्रुप के बाउंसरों ने जिस प्रकार उपपा केन्द्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी और पार्टी कार्यकर्ता रेखा धस्माना पर हमला कर बंधक बनाया वह उत्तराखण्ड के लिए किसी चुनौती से कम नही है। कम इसलिए नही कि नैनीसार की जमीन जिन्दल ग्रुप को देने के खिलाफ उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी पिछले 4 माह से आन्दोलित है उसके केन्द्रीय अध्यक्ष को 11 साथियों के साथ शान्ति भंग की आशंका के तहत जेल डाल दिया जाता है और हमलावरों को पुलिस साफ बचा कर ले जाती है जिनके विरुद्ध हमला, जान से मारने की कोशिश और लूट जैसे अपराध की तहरीर राजस्व पुलिस को दी जा चुकी है।  पी सी तिवारी व रेखा धस्माना को  12 घंटे तक उपचार न मिलना कितना तकलीफदेह है।
    शनिवार की घटना पर रामनगर, अल्मोडा, नैनीताल और देहरादून सहित कई स्थानों पर प्रतिक्रिया हुई है। जुलूस, प्रदर्शन, धरना और चक्का जाम आयोजित हुए हैं और मुख्यमंत्री का पुतला फूंका गया है। ये सिलसिला क्रमशः बढेगा। पिछले महिने बेडीनाग के राई आगर में  खनन माफिया ने गांव वालों पर फायरिेग की थी, वहां से भी मुख्य अभियुक्त को छोड दिया गया। सन् 2004 में ही उत्तराखण्ड और राजधानी आन्दोलन में 13 बार अनशन कर चुके बाबा मोहन उत्तराखण्डी को 38 दिन अनशन से उठा कर मार दिया गया और आतताई मौज कर रहे हैं।
   पी सी केवल नैनीसार के मामले में विरोध कर रहे हों ऐसा नही है। छात्र जीवन से ही आम जन की लडाई का यह सिपाही पहली बार सन् 1978 के वन आन्दोलन में जेल गया, तब से आन्दोलन और जेल जैसे उनका दूसरा घर हो गया। नशा नही रोजगार दो आन्दोलन, उत्तराखण्ड राज्य आन्दोलन और उत्तराखण्डी सोच और अस्मिता, जल- जंगल-जमीन, माफिया संस्कृति विरोधी हर आन्दोलन के वे अगुवा हैं।
  पी सी का दमन उत्तराखण्ड के सवालों का दमन है और हरीश रावत एण्ड कम्पनी  अच्छी तरह जता देना चाहती है कि उत्तराखण्ड के मुखरतम लोगों  से वह कैसे निबटेगी? अब सवाल प्रतिकार का है। हमने बाबा मोहन उत्तराखण्डी को बहुत सस्ते में खो दिया उनके हत्यारे चिन्हित ही नही हुए। सरकारी जांच लिपा-पोती बन गयी। क्या हम हर दमन को सस्ते में ले लें और उत्तराखण्ड के विनास को स्वीकार लें? हरीश रावत  को उनके हाई कमान ने ऐसी छूट दी हो लेकिन उत्तराखण्ड की जनता ने तो नही दी ना? फिर ये जिन्दल, ये खनन माफिया क्या हैं? साफ है कि सरकार के पाले पोसे गुण्डे हैं नही तो नैनीसार में जिस जिन्दल ग्रुप को जमीन आवंटन का विरोध हे रहा है उसी जिन्दल को केदारनाथ में पुनर्निर्माण के लिए आमंत्रित किया गया है।
  लडाई सत्ता-नौकरशाही- माफिया त्रिकोण के साथ है। जनता का पक्ष हमेशा प्रवल रहा है क्या उस परम्परा को हम बट्टा लगने देंगे? पी सी तिवारी  जैसे लोगों को समझना चाहिए कि सन् 1995-96 में आईएफडब्लूजे के इलाहाबाद अधिवेशन में मुज्फ्फरनगर कांड  व अखबारों पर हल्ला बोल के विरोध में उ प्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायमसिंह यादव के मुंह पर मुलायम सिंह मुर्दावाद के नारे लगना हरीश रावत एण्ड कम्पनी के विरुद्ध आन्दोलन चलाने से अधिक सरल और सुनने वाले में कहीं न कही सुनने की कुब्बत अधिक रही होगी। आपको मुख्य मंत्री के आगमन के तीन स्थानों पर रोक दिया गया। और हरीश रावत तब भी अपने कार्यों को जनता की अपेक्षा कहते हैं। उन्होंने साफ लहजे में धमकी दी थी कि लोगों को यदि विकास और शिक्षा नही चाहिए तो नैनीसार का आवंटन रद्द कर देंगे। अजब तानाशाही है। आप अपने लगाव जिन्दल या किसी के साथ रखिए लेकिन उत्तराखण्ड की कीमत पर नही।  जिस विकास में उत्तराखण्ड  के हितों का सिपाही हमले का शिकार हो और और जिस शिक्षा के लिए नैनीसार जैसी भूमि पर माफिया नजर गडाये हों न ऐसा विकास चाहिए और न ऐसी शिक्षा।

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