Friday, January 15, 2016

जनवरी 16 अंक-संपादकीय-- संस्कृति और सभ्यता संरक्षण के हवाई दावे खत्म हों


         मानव के शाररिक-मानसिक विकास क्रम के साथ सभ्यता और संस्कृति का विकास हुआ। विश्व की उन अलग-अलग सभ्यताओं संस्कृतियों में एक बात समान है उसका प्रचलन, पद्धति, रीवाज-रीति , समय और परम्परा चाहे वे अलग तरह की हों। हमारे पौराणिक मान्यताओं में देवासुर संग्राम, देवताओं को अमरत्व के लिए समुन्द्र मंथन और अमृतघट के लिए हुई छीना झपटी में अमृत के चार रूथानों पर छलकने के उललेख हैं। हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक, जहां प्रत्येक 12 साल में कुम्भ मेला आयोजित होता है, देश-विदेश के आस्था से लवरेज श्रद्धालु वहां स्नान कर  पुण्य लाभ लेते हैं। साधु-महात्मा धर्म और उसके तत्वों पर चर्चा-परिचर्चा करते हैं। यही 12 साल में चार स्थानों पर अर्द्धकुम्भ का पुण्य श्रद्धालु लेते हैं। हरिद्वार में इस बार अर्द्धकुम्भ है जिसका पहला स्नान मकर संक्राति 14 जनवरी से प्ररम्भ होगा और बैसाखी पूर्णिमा के साथ समापन होगा।
     सदियों से चले आ रहे कुम्भ मेला धीरे -धीरे अन्य गतिविधियों की तरह राजनैतिक रुप लेने लगे हैं। केन्द्र और राज्य सरकारें अलग-अलग पार्टियों की सरकारें सुव्यवस्था को अपने  पाले और कुव्यवस्थाओं को दूसरे के पाले में  डालने को तत्पर रहती हैं। कुम्भ घोटाले और उपलब्धियों पर पिछली बार अंनत चर्चाऐं हुई हैं। इस बार भी केन्द्र से अर्द्धकुम्भ के लिए धनराशि न लिने की राजनीति होती रही है। हरिद्वार के कुम्भ को आरोप- प्रत्यारोपों के बजाय एक स्वस्थ परम्परा का वाहक बनाया जाना चाहिए, लेकिन शायद ही ऐसा हो।
ग्ंागा की पवित्रता और उसकी सौगन्ध खाने वाले अगणित लोग देश और उत्तराखण्ड की सरकारों, नौकरशाही और विमर्श के क्षेत्रों में हैं। अलखनन्दा और भागीरथी के संगम देवप्रयाग जहां से गंगा का उद्भव है प्राचीन सांस्कृतिक विरासत समेटे उपेक्षित रह गया है। इस बार सरकार ने देवप्रयाग को कुम्भ क्षेत्र में शामिल करने का निर्णय लिया है। दवेप्रयाग दो पवित्र नदियों का संगम, रघुनाथ मंदिर, निजी प्रयासों से स्थावित वेधशाला, पौराणिक ग्रंथों के सृजन और ऋषि-मुनियों की तपःस्थली क्या कुछ है वहां राज्य गठन के 15 सालों में सरकारों ने जानने का प्रयास नही किया। सरकारों ने बागेश्वर, जागेश्वर जैसे तीर्थों को उनके अनुरुप पहचान  देने की कौन सी कोशीश की? जागेश्वर में योग महोत्सव का नाम लिया जा सकता जो योग से अधिक कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी की उपस्थिति के लिए चर्चित हुआ।
  जिस प्रकार राज्य अवधारणा गैरसैंण के बिना पूरी नहीं होती उसी तरह देवभूमि उत्तराखण्ड में कोई भी धर्म और संस्कृति सम्बन्धी चर्चा देवप्रयाग के बिना अधूरी रहेगी। यह भी कि उत्तराखण्ड में सोंसों से काम नही चल सकता वास्तविकता के धरातल पर ही जाना होगा।
   बेरीनाग के राईआगर गांव में खडिया माफिया का जो ताण्डव हुआ वह उत्तराखण्ड में बिगडती स्थियों की ओर साफ संकेत कर रहा है। खनन माफिया के गुण्डे ग्रामवायिों पर फायरिंग कर दें इससे बडी दशहत फैलाने की घटना क्या हो सकती है? प्रदेश में जितनी सडकों पर काम चल रहा है वह राम भरोसे है, ऐसी अव्यवस्था कि जहां रिटर्निग वांल या कलमठ  की जरुरत नही वहां बन रहे हंै। चैखुटिया-मासी के बीच मोटर मार्ग तो मानो खाने-कमाने का धंधा बन गया है और यात्रियों व स्थानीय निवासियों की स्थाई मुश्किल भी। किन ऐंन्सियों को कौन क्या काम देता है, पता नही। विश्व बैंक और एशिया बैंक के ऋण यदि लूटने के लिए हैं तो यह स्थिति उत्तराखण्ड को तवाह करने वाली है।
   नव वर्ष 2016 अभिनन्दन, संपादकीय सहयाोगियों, लेखकों, सुहृदय पाठकों, विज्ञापनदाताओं, शुभ चिन्तकों और देश-दुनिया के उन संधर्षशील कोटि-कोटि लोगों को नव वर्ष की शुभ कामना जो मानवता की बेहतरी के लिए सघर्षरत हैं।
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2 comments:

Unknown said...

सवाल ताकत का बना रहा,शाश्वत है,जो धर्म पर राजनीति के जरिए काबिज है,समाज उसकी जरूरत है इतिहास को बनाने,चुनने और भुगतने भुगतनेके लिए ,अब इसे विकास कहें या कुछ और,क्योंकि ये आप चुन रहे बिना भविष्य की चुनौती समझे ।

Unknown said...

सवाल ताकत का बना रहा,शाश्वत है,जो धर्म पर राजनीति के जरिए काबिज है,समाज उसकी जरूरत है इतिहास को बनाने,चुनने और भुगतने भुगतनेके लिए ,अब इसे विकास कहें या कुछ और,क्योंकि ये आप चुन रहे बिना भविष्य की चुनौती समझे ।