नेपाल में भारत के राजदूत रंजीत रे ने माना है कि भारत और नेपाल के संबन्ध प्रभावित हुए हैं। नेपाल में संविधान सभा द्वारा संविधान स्वीकृति के बाद वहां तनाव है और नेपाल के लिए भारतीय सामान आवाजाही नही हो पा रही है। इसका कारण नेपाल की आंतरिक स्थितियां तो हैं ही भारत की विदेश नीति की भी असफलता है। नेपाल हमारा न केवल पडोसी देश है बल्कि वहां रोटी-बेटी के संबन्ध हैं जो किसी भी और पडोसी देश के साथ नही हैं। नेपाल से मिलने वाली सीमा उत्तराखण्ड, उ प्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम से मिलती हैं और इतने राज्यों की सीमाओं के लोग आपस में घुलमिल कर रहते हैं।
नेपाल में राजशाही के खत्मे के साथ वहां की राजनैतिक स्थितियां बदली हैं और वहां भारत के प्रति कहीं न कही अविश्वास के भाव पनपे हैं चाहे वह संख्या न्यून हो। लमबे वाम आन्दोलन के बाद संसद में नेपाली कांगे्रस का वह प्रभाव नही रहा जो राजशाही के दौर में हुआ करता था। नेपाल के साथ संबन्धों की मधुरता कुटनीतिक तौर भी माने रखती है, भारत से सहायता न मिलने की स्थिति में नेपाल चीन से संबन्ध बनायेगा। भोगौलिक दुरुहता अब तक उसकी राह रोकती रही है और एक बार चीन-नेपाल उस भेगौलिकता पर विजय पा लें तो भारत की उसे उस हद तक आश्रित रहने की जरुरत नही होगी।
भारतीय विदेश नीति दूसरी बार नेपाल मामले में असफल सिद्ध हुई है। वहां के विनाशकारी भूकंम्प में नेपाल ने भारतीय सहायता से इंकार के बाद वर्तमान में वहां भारत के विरुद्ध देखी जा रही प्रतिक्रिया किसी सफल विदेश नीति का संकेत नही है। नेपाल के साथ संबन्धों का बिगाड पहले से ही खराब पडोस के चलते हमारे लिए दुरूवारियां ही पैदा करेगी।
हमारे साउथ और नोर्थ ब्लाक के अधिकारी किस योग्यता से नेपाल संबन्धों को देखते हैं और प्रधान मंत्री से लेकर विदेश मंत्री तक इस स्थिति को संभालने में तत्पर होते हैं यही नेपाल व भरत के संबन्धों के गतिरोध को तोडेगा।
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