Wednesday, December 23, 2015

गरीब को लूट लो मार दो और फिर हडताल कर दो, वाह रे तंत्र!

           हल्द्वानी के निजी सेंट्रल अस्पताल में मरीज की मृत्यु के बाद हुए घपले में डाक्टर की पिटाई से निजी अस्पतालों के साथ सरकारी डाक्टर भी हडताल पर चले गये। मरीज के परिजनों पा सीनियर कार्डियोलांजिस्ट की पिटाई का आरोप है। मार-पिटाई , हिंसा निन्दनीय है और यदि डाक्टर पीटा गया जो मरीज की जान लेने का जिम्मेदार है तो भी भीड को कानून हाथ में लेने का अधिकार नही होना चाहिए।
  डाक्टर भगवान नहीं है और मरीज के लिए वह भगवान से कम भी नहीं है। प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी और लूट आये दिन सुर्खियां बनती रही हैं। 62 वर्षीय रतनसिंह चल कर अस्पताल आता है और  अस्पताल में मर जाता है। परिजन अस्पताल की लापरवाही बताते हंगामा करते हैं और डाक्टरों की पिटाई लगा देते हैं। दूसरे दिन से डाक्टर और निजी चिकित्सालय हडताल पर चले जाते हैं और तीसरे चैथे दिन डाक्टरों की यूनियन भी हडताल का आह्वान कर देती है। भाई लोग आप साधन सम्मपन्न हैं मरीज को 50 से कम की फीस पर भर्ती नही करते और आपरेशन के जितने मांगों वह देना मरीज के परिजनों की मजबूरी है। पात्र और घटनास्थल बदल सकते हैं लेकिन स्थितियां सब जगह एक हैं।
    अब्बल तो सेंट्रल हांस्पिटल सरकारी सा नाम देना ही ठगी सा लगता है। मरीज के परिजनों को एंजियोग्राफी के बाद यदि आपरेशन की बात कही गयी तो पहले आपरेशन कैसे हुआ? यदि हुआ तो वह मरीज को बचाने के लिए होना चाहिए मारने के लिए नही। मरीज के परिजनों ने जो अपराध किया है उसकी सजा उन्हें मिलनी चाहिए। उनकी यह सजा कम नही है कि वे एक जिन्दा इंसान को अस्पताल लाये और मुर्दे को ले गये। फिर भी यदि सफेद कांलर में मौत कालाधन्धा करने वाले लोग और सफेद कोट धारी चाहते हैं उन्हें सजा हो तो होनी चाहिए। लेकिन एक जिन्दा इंसान को मुर्दा बनाने वालों की सजा क्या हो यह कौन तय करेगा? निश्चित रुप से वे लोग तो नहीं जो इंसानों की जिन्दगी से खेल रहे हैं, इनमें सरकार और वे नेता भी हैं जिनकी पेरोकारी से उत्तराखण्ड के सरकारी अस्पताल पी पी पी मोड के कसाईखने बन गये हैं। सरकार से करोडों रु डकारो और कोई भी विशेषज्ञ चिकित्सक न रखकर अस्पताल को रिफर सेंटर बना दो, जनता मरे-बचे उसका भाग्य, और तुम्हारा एम ओ यू कामधेनु है और पैसा तुम्हारी जेब में जाने को बेताब है।
   हम बार-बार कहेंगे कि कानून हाथ में लेना गैरकानूनी है। बडी हसरत से परिजन प्रसव के लिए प्रसूता को सरकारी अस्पताल ला रहे हैं जिसको प्रोत्साहित करने का ढोंग सरकार भी बखूबी करती है और अस्पताल में डाक्टर की लापरवाही से जच्चा या बच्चा या दोनों नहीं रहते, परिजन किसे कहें? जिसके भरोसे वे अस्पताल आये वही कातिल है। जब डाक्टर और अस्पताल के संचालक कातिल हो जाते हैं उनकी सजा क्या है? सफेद कपडों का काला कारनामा तब हडताल पर ही जायेगा। ऐसी हडतालों के उन कसाईखानों पर ताले जडने चाहिए जो मरीज के जीवन से खिलवाड बन गये।
   सोचिये डाक्टर! आप आसमान से उतरे फरिस्ते नही हैं आपको डाक्टर जैसे भगवान का अवतार बनाने में इस देश और देशवासियों का बेशकीमती संसाधन जाया हुए हैं। हो सकता है और है भी कि आप में से बहुत सारे लोग बहुत अच्छा काम करते हैं गरीब-गुरुवों की निःशुल्क सेवा करते हैं लेकिन अपने बीच छिपे शैतानों को चिन्हित करना भी आपकी जिम्मेदारी है और जो पेशा कलंकित हो जाता है उसे प्रतिष्ठा मिलने में बहुत समय लगता है। इसलिए हडताल में जाने के बजाय सोचो कि मरीज आपके यहां से मुर्दा नही स्वस्थ जाये।  

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