विजय दिवस पर अच्छा नागरिक बनने की शपथ लें
विजय दिवस पर सेना के शौर्य और पराक्रम की चर्चा अवश्य की जानी चाहिए लेकिन उनकी समस्याओं को नजरअंदाज कर उस चर्चा का कोई महत्व नही है। हमें समझना चाहिए कि प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल तक हमारे सैनिक अपने जीवन की परवाह न कर देश के लिए लडते और शहादत प्राप्त करते रहे हैं। विषम से विषम परिस्थितियों में सर्वोच्च बलिदान को आतुर ये सैनिक देश के उस वर्ग से आते हैं जहां देश की रक्षा का जज्बा तो है ही सेना और अर्द्ध सैनिक बल रोजगार भी हैं।
देश के ऐसे बहुत से परिवार हैं जिनकी पीढियां सेना और देश की रक्षा में परम्परा बन गयी हैं। विजय दिवस उन सब को सलाम करने का दिन है। देश की सीमाओं पर बलिदान हो जाने वाले उन शहीदों को नमन, उन माताओं-वीरांगनाओं को नमन जिनकी गोद और सिंदूर ने सीमाओं की रक्षा करते वीर गति पायी और वे योद्धा जो प्राणों की परवाह न करते हुए लडे और आज हमारे बीच हैं श्रद्धा प्रेरणा के पात्र हैं।
पूर्व सैनिक एक रैंक एक पैंशन की मांग पर लगातार आन्दोलित हैं। सरकार ने घोषणा भी कर दी है लेकिन आन्दोलन जारी है अर्थात उनकी मांगों पर सही निर्णय नही हुआ। अर्द्ध सैनिक बल जो युद्ध के अलावा हमेशा अग्रिम पंक्ति के रक्षक होते हैं उन्हें शहादत, पैंशन और दूसरी सुविधाओं में कमतर देखा जाना उचित नही है। सैन्य बलों और दूसरी सेवाओं के अन्तर को समझना चाहिए और उनकी समस्याओं को लटकाये रखने की प्रवृति त्यागनी चाहिए। विजय दिवस पर यदि स्वयं में एक अनुशासित नागरिक और जो जहां- जिस स्थान पर है उस कर्तव्य के पालन का निर्णय लेते हैं तो यही हमारे सैनिकों को न्याय देने की दिशा का पहला कदम होगा।
पुरुषोत्तम असनोड़ा
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