गैरसैंण,
सन् 1971 के युद्ध मे शानदार विजय और विश्व के नक्शे पर बंग्लादेश नामक नये राष्ट्र के उदय की महत्वपूर्ण घटना हमारी सेनाओं के बलिदान और शौर्य का प्रतीक था। इस लडाई में गैरसैंण क्षूत्र के 9 सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान कर भरत की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। डोल्टू निवासी राइफलमैन मकरसिंह को अद्वितीय शौर्य के लिए मरोणोपरान्त महावीर चक्र से नवाजा गया।ं
नायक धर्मसिंह बच्छुवाबाण,रा मै गोबिन्दसिंह रावत फरसों, रा मै बलवन्तसिंह रावत देवपुरी, रा मै सुखदेवसिंह दिवालीखाल, सि देवसिंह कुशरानी, पा आनन्दसिंह मारखोली व बख्तावरसिंह मेहलचैरी ने सन् 1971 के युद्ध में शहादत दी। शहादत की इस लम्बी श्रंखला के बावजूद क्षेत्र में कोई सैन्य स्मारक नही है।
सन् 1962 के भरत-चीन युद्ध में सबसे बधिक 12 सैनिकों ने एक दिन में ही देश की सीमा पर अपना सर्वोच्च बलिदान किया। 19 नवम्बर 1962 को देश की रक्षा में लां ना देवसिंह बिष्ट झूमाखेत, रा मै सुरेशानन्द खेती, रा मै धर्मसिंह तलसारी, रा मै चैतसिंह नेगी स्यूणी तल्ली, रा मै धर्मसिंह टैंटुडा,रामै आलमसिंह बोखनारा, रा मै गोेविन्दसिंह कफलोडी, रा मै लखनसिंह सिमाण, रा मै गोविन्दसिंह नैणी, रा मै कलमसिंह रामडा,पाइनियर दरवानसिंह गोगना, पा बागसिंह खाल ने देश की रक्षा में प्राणों की आहुति दे दी।
सन् 1965 के भारत- पाक युद्ध में गैरसैंण् विकास खण्ड से 6 शहादतें हुई- लैंसनायक केशरसिंह पुण्डीर गोगना, लैसनायक त्रिलोकसिंह कण्डारी खंोड, रा मै महेन्द्रसिंह देवपुरी, रा मै बलवन्तसिंहउसेरा, रा मै अमरसिंह पंवार ग्वाड, रा मै दरवानसिंह गुसांई मैखोली इस युद्ध में देश के काम आये।
सन् 1999 के कारगिल युद्ध जिसे आपरेशन विजय कहा गया में गैरसैंण के 5 जावाजों ने शहादत दी जिसमें रा मै रणजीतसिंह बासीसैम, रा मै रणजीतसिंह अक्षयवाडा, नायक कृपालसिंह पज्याणा हवा पदमराम घंडियाल व रा मै अमित नेगी टैटुडा शामिल थे।
श्री लंका में शान्ति सेना के रुप आपरेशन पवन मेें 9 तथा आतंकियों से लडते हुए 12 सैनिक शहीद हुए हैं। गैरसैंण से पेशावर विद्रोह में मैखोली के सूबेदार जयसिंह व ग्वाड के रा मै प्रतापसिंह ने अहिंसा की मिसाल कायम की थी। आजाद हिन्द फौज में भी क्षेत्र से बडी संख्या में सेनानी रहे।
सन् 1971 के युद्ध मे शानदार विजय और विश्व के नक्शे पर बंग्लादेश नामक नये राष्ट्र के उदय की महत्वपूर्ण घटना हमारी सेनाओं के बलिदान और शौर्य का प्रतीक था। इस लडाई में गैरसैंण क्षूत्र के 9 सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान कर भरत की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। डोल्टू निवासी राइफलमैन मकरसिंह को अद्वितीय शौर्य के लिए मरोणोपरान्त महावीर चक्र से नवाजा गया।ं
नायक धर्मसिंह बच्छुवाबाण,रा मै गोबिन्दसिंह रावत फरसों, रा मै बलवन्तसिंह रावत देवपुरी, रा मै सुखदेवसिंह दिवालीखाल, सि देवसिंह कुशरानी, पा आनन्दसिंह मारखोली व बख्तावरसिंह मेहलचैरी ने सन् 1971 के युद्ध में शहादत दी। शहादत की इस लम्बी श्रंखला के बावजूद क्षेत्र में कोई सैन्य स्मारक नही है।
सन् 1962 के भरत-चीन युद्ध में सबसे बधिक 12 सैनिकों ने एक दिन में ही देश की सीमा पर अपना सर्वोच्च बलिदान किया। 19 नवम्बर 1962 को देश की रक्षा में लां ना देवसिंह बिष्ट झूमाखेत, रा मै सुरेशानन्द खेती, रा मै धर्मसिंह तलसारी, रा मै चैतसिंह नेगी स्यूणी तल्ली, रा मै धर्मसिंह टैंटुडा,रामै आलमसिंह बोखनारा, रा मै गोेविन्दसिंह कफलोडी, रा मै लखनसिंह सिमाण, रा मै गोविन्दसिंह नैणी, रा मै कलमसिंह रामडा,पाइनियर दरवानसिंह गोगना, पा बागसिंह खाल ने देश की रक्षा में प्राणों की आहुति दे दी।
सन् 1965 के भारत- पाक युद्ध में गैरसैंण् विकास खण्ड से 6 शहादतें हुई- लैंसनायक केशरसिंह पुण्डीर गोगना, लैसनायक त्रिलोकसिंह कण्डारी खंोड, रा मै महेन्द्रसिंह देवपुरी, रा मै बलवन्तसिंहउसेरा, रा मै अमरसिंह पंवार ग्वाड, रा मै दरवानसिंह गुसांई मैखोली इस युद्ध में देश के काम आये।
सन् 1999 के कारगिल युद्ध जिसे आपरेशन विजय कहा गया में गैरसैंण के 5 जावाजों ने शहादत दी जिसमें रा मै रणजीतसिंह बासीसैम, रा मै रणजीतसिंह अक्षयवाडा, नायक कृपालसिंह पज्याणा हवा पदमराम घंडियाल व रा मै अमित नेगी टैटुडा शामिल थे।
श्री लंका में शान्ति सेना के रुप आपरेशन पवन मेें 9 तथा आतंकियों से लडते हुए 12 सैनिक शहीद हुए हैं। गैरसैंण से पेशावर विद्रोह में मैखोली के सूबेदार जयसिंह व ग्वाड के रा मै प्रतापसिंह ने अहिंसा की मिसाल कायम की थी। आजाद हिन्द फौज में भी क्षेत्र से बडी संख्या में सेनानी रहे।
पुरुषोत्तम असनोड़ा
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