Friday, December 11, 2015

व्यवस्था पुख्ता हो-निरपराध फंसे नही अपराधी छूटे नही


         मुंबई के बांद्रा हिल रोड पर 28 सितम्बर 2002 को हिट एण्ड रन मामले में गुरुवार को सलमान खान को मुंबई उच्च न्यायालय ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। लापरवाही और शराब पीकर गाडी चलाने के आरोपी सलमान खान पर पांच व्यक्तियों को कुचलने का आरोप था, जिसमें एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी थी जबकि चार घायल हुए थे।
  निचली अदालत से सलमान को 5 साल की कैद की सजा हुई थी जिसके विरुद्ध सलमान उच्च न्यायालय गये स्थगन प्राप्त किया और अब बरी हो गये हैं।, उच्च न्यायालय ने पुलिस की जांच और साक्ष्यों को पर्याप्त नही माना। देश में हजारों -हजार अपराधी साक्ष्य व विवेचना में कमी के चलते सजा से छूटते रहे हैं और समाज में उनका रुतवा तब भी कायम रहता है। यह हमारी पुलिसिंग व न्याय प्रणाली दोनों के लिए ही दुर्भाग्य है कि स्वतंत्रता के 68 साल बाद भी हम ऐसा तंत्र नही विकसित कर पाये जिसमें निरपराध को सजा होने और अपराधी के छूट जाने की संभावना न के बराबर हो।
  सलमान के केस में जैसा कि जज ने स्वयं कहा है कि केस का फैसला मीडिया ट्रायल या जन भावना के आधार पर नही लिया जाता , यह साक्ष्यों के आधार पर होता है। जज महोदय बिलकुल सही कह रहे हैं अभियोजन ने वे सब साक्ष्य अदालत को नही मुहैया करायी जिसके दम पर अदालत आरोपी को सजा देती। मुकदमे की 13 साल बाद की स्थितियों में आने वाला अंतर अपराधी के लिए संजीवनी बन जाता है। सलमान दोषी हों या नही इससे अधिक तीखा सवाल है फुटपाथ पर जो पांच लोग कुचले गये उनका अपराधी कौन है? यदि सलमान नही तो एक जिन्दे इंसान को मुर्दा किसने बनाया? चार लोग जो घायल हुए और वर्षों तक उस पीडा को भोगते अपनी रोजी- रोटी का इंतजाम करने में भी असफल रहे उनका गुनाहगार कौन है? क्या कोई शराबी तेज रफ्तार से अपनी मंहगी गाडी निरीह लोगों पर चढा दे औश्र अच्छी फीस के साथ किया गया वकील कानून के उन छेछों का सहारा ले उसे बचा ले जाय यह कहां का न्याय है?
   पुलिस का काम होना चाहिए था वह निरीह लोगों की रक्षक हो, विवेचना और अभियोजन में भी पीडित का पहला पक्ष होना चाहिए लेकिन सजा पाया मुजरिम जब उच्च अदालत में जाता है और पीडित बन गुहार करता है तो उसको न्याय मिल जाता है। लेकिन जो लोग बेमौत मारे गये उनको न्याय कब मिलेगा? न्यायपालिका और संसद को विचार करना चाहिए कि निरपराध फंसे नही और अपराधी छूटे नही।    
 पुरुषोत्तम असनोड़ा

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