Thursday, December 10, 2015

अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस- मुजफ्फर नगर काण्ड के अपराधियों को सजा दो

    अन्तराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर देश-प्रदेश और विश्व के उन तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का जो विषमतम परिस्थितियों में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं, को शुभ कामना। मानव अधिकारों से बंचित उन समस्त मानव जाति के साथ सहानुभूति की उनके अधिकारों की लडाई में यथा संभव योगदान का प्रयास रहेगा।
    उत्तराखण्ड में मानवाधिकारों की स्थिति किसी अन्य राज्य से कम जटिल नही है। केन्द्र से धन लेने की नियत के चलते उत्तराखण्डके कई युवाओं को माओवादी बताकर जेलों में ढूंसा गया और अदालत तक सरकार के तर्क नही चले। सीमा क्षेत्र होने  और निहित लोभ के कारण सरकारों के ऐसे दुःसाहस से पुनः-पुनः इंकार नही किया जा सकता। इसलिए आवश्यक है कि मानवाधिकारों के उलंघन के मामलों में मावनाधिकार कार्यकर्ता एकजुट और त्वरित आन्दोलनात्मक कार्यवाही के लिए तैयार हों।
   लाल-नीली बत्तियां उत्तराखण्ड में कम खौफनाक नही हैं और उनकी हनक और प्रशासन द्वारा उनकी चमचागिरी में सडकों और अन्य स्थानों पर आम नागरिकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को रोका जाना गम्भीर मामले हैं। ऐसी कई-कई घटनाओं का सामना उत्तराखण्ड के आम नागरिक व सामाजिक जीवन में रह रहे लोगों को करना पडा है।
     विकास लोकतंत्र में आम आदमी के मानवाधिकार का मामला है। मूलभूत सुविधाऐं उपलब्ध कराना व्यवस्था की जिम्मेदारी है। और जब सडक की दुर्दशा के चलते हादसे हमें जानन-माल का नुकसान होता है तो जिम्मेदारी निश्चित रुप से सरकारों की होनी चाहिए।  तत्काल औश्र उचित चिकित्सा का न मिलना भी मावनाधिकार हनन है औउर उततराखण्ड में पिछले 15  साल विकास के मामले में मानवाधिकार हनन के दायरे में है।
    उत्तराखण्ड के मानवाधिकारों को रोंदने की सबसे विभित्स घटना 2 अक्टूबर 1994 को मुज्फ्फर नगर के रामपुर तिराहे की है। 21 साल बाद भी उत्तराखण्ड के आन्दोलनकारी महिलाओं को न्याय नही मिला। शान्तिपूर्ण आन्दोलन के लिए दिल्ली जाने से रोकना जहां मानवाधिकारों का हनन था वही विभित्स और बर्बर घटना के आततायी कोई सजा नही पाये यह मानवाधिकारों की हार के रुप में देखा जाना चाहिए और ये मानना चाएि कि 21 साल उत्तराखण्ड और देश के काले शासन और सोच के दिन रहे जिसमें आततायी मौज करते रहे और पाडित ग्लानि के शिकार हुए।
    अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस पर क्या हम आशा करें कि विश्व के तमाम मानवाधिकार कार्यकर्ता एकजुट हो मुजफ्फर नगर कांड के अपराधियों को सजा दिलाने में सहायक होंगे। सरकारों के उन नुमाइन्दों को जो मानवाधिकार की बडी बातें करते हैं यदि उत्तराखण्ड के पीडितों को न्याय दिला सकें तो ही वे नुमाइन्दी के योग्य कहे जा सकते हैं।   
                                                  पुरुषोत्तम असनोड़ा

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