Sunday, December 20, 2015

गिर्दा को समर्पित- पहाड़ 19 गिर्दा के आयाम


गिरीश तिवा्रडी ‘गिर्दा‘ विराट व्यक्तित्व, सामान्य व्यक्ति और मयालू अपना सा गिर्दा उनके बारे में जितना कुछ कहा-लिखा-पढा जाय कम है। गिर्दा को समर्पित पहाड 19 आठ भाग में है।  संपादक डा शेखर पाठक ने पहाड की आंर से दो संपादकीय लेख ‘सबसे अलग‘ व ‘गिर्दा के अलावा‘ लिखे हैं। पहले भाग संस्मरण हैं- चिरंजीव गिरीश-चारु चन्द्र पाण्डे, 1977 के बहाने गिर्दा की याद-चंडी पगसाद भट्ट, जरा उस तरह से देखना-नवीन जोशी, मेरे नानू मामा-रमेशचन्द्र मिश्र, गिर्दा नाराज मत होना-गोविन्द पंत ‘राजू‘, वह तो अजात शत्रु था-महेश पाण्डे, तुम्हारे समय को सलाम-देवेन मेवाडी, बिखर गये ज्यौंला मुरुली के स्वर- नरेन्द्रसिंह नेगी सहित 22 आलेख हैं।
 भाग दो समीक्षा है जिसमंे- मुक्ति का सागर-मंगलेश डबराल, गिर्दा की सृजन यात्रा- कपिलेश भोज, पानी का फर्श काठ का तकिया व लोक नाटकों के बहाने- जहूर आलम, हमीं से तुम्हारा कफन सा बुना है-प्रयाग जोशी, लोक को मुख्य धारा की बहस बनाने की जद्दोजेहद-बटरोही, कोलाहल से गीत और गीतों से कोहराम-महेश चन्द्र पुनेठा, गिर्दा और उसकी कविताः कुछ टूटी कुछ बिखरी- वीरेन डंगवाल,गिर्दा का गद्य-राजीव लोचन साह, सांझ का रतमोलिया कवि-अनिल कार्की के लेख हैं।   
   भाग तीन - कुछ कुछ मूल्यांकन, चैथा- विशेष और पांचवा कविताओं का है। जिसमें गिर्दा आने को हैं-राजेश सकलानी,नींद से बाहर-शिरीष कुमार मौर्य,मेरे मास्साब-हरीश पंत, पिता-दिनेश उपाध्याय, गिर्दा तुम कब आओगे- दिनेश तिवारी सहित 14 कविताऐं हैं। छठा भाग शताब्दी संस्मरण, सातवां श्रद्धांजली और आठवां प्रकाशन का है।
   पुस्तक का आवरण प्रसिद्ध फ्रांसिसी चित्रकार कैथारीन कानफिनो-अडोर का है तो रेखांकन एकेश्वर हटवाल, मुकुल तिवारी, रोहित जोशी, विश्वम्भरनाथ साह ‘सखा‘ व हरिपाल त्यागी के हैं। डा रघुवीर चन्द द्वारा पहाड के लिए प्रकाशित पुस्तक में संपादक मण्डल ने बहुत परिश्रम किया है और पूर्ववर्ती प्रकाशनों की तरह एक बार पुनः सार्थक अंक पाठकों के सामने है।
 लगभग 400 पृष्ठों की पुस्तक गिर्दा के बारे में काफी जानकारी व समझा देती है। पुस्तक उपयोगी एवं संग्रहणीय है।
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