Tuesday, November 24, 2015

समाधान के रास्ते खोजने हैं


             पौडी के  धारकोट गांव की 7 वर्षीय बालिका संतोषी को सोमवार सायं 6 बजे  गुलदार ने मार दिया। उत्तराखण्ड के पहाडों में संतोषी जैसी कई बच्चों को गुलदार अपना निवाला बना चुका है। संविधान में जीवन के मौलिक अधिकार पर चाहे हिंसक जानवर ने ही किया हो खुला हमला है। आज प्रातः किसी मित्र ने फेसबुक पर उसकी रक्त रंजित लाश का चित्र दिया है। जीवन की रक्षा का सम्मपूर्ण दायित्व व्यवस्था का है। बावजूद इसके संतोषी को गुलदार द्वारा मार देना हमारी संवेदनाओं उस कदर नही झिंझोड रहा जितना अभिनेता आमीर खान का बयान। 
  सोशल मीडिया में लगातार छाये आमीर के बयान पर ऐसी हाई-तौबा क्यों है? उसने कहा- बच्चों की सुरक्षा को लेकर दुविधा है, होगी भाई, कौन कहां रहे, क्या खाये, कैसा पहने, किससे बोले-बतियाये, किसे पूजते हैं, मन्नत मांगते हैं, कहां फूल या चादर चढाते हैं ये तो नितांत निजी मामले है। संविधान में इस सब को मौलिक  अधिकारों में वर्णित किया गया है।
   आमीर के पक्ष और विपक्ष में कहने-सुनने वालों की एक से एक बडी लाइन बन रही है। लेकिन संतोषी जैसे सैंकडों बच्चों को गुलदार निवाला बना गया, उसे नरभक्षी घोषित करने की मांग हुई, नरभक्षी मारा गया या नही उसके बाद अगली घटना तक सब चुप। इस व्यवस्था को जनता के जीवन-मरण के सवाल पर सांप क्यों सूंघ जाता है? ग्राम प्रधान से लेकर संसद तक बैठा हमारा प्रतिनिधि ऐसा स्थाई उपचार क्यों नही तलाशता कि अगला कोई बच्चा, कोई घसियारी, कोई पानी- लकडी को गयी मां-बहिन फिर गुलदार का शिकार न बने। सरकारें क्या लोगों को मूर्ख बनाने के लिए ही हैं? या उत्तराखण्ड और पूरा देश भी कह सकते हैं में लोग उन पार्टियों के जर-खरीद गुलाम हो गये है जिनके पक्ष अथवा विपक्ष में ही उनका मुंह खुलता है? हमारा मीडिया मंत्रियों-सुपर मंत्रियों के खाने-पखाने की खबर तक परोसता है, क्या वह समाधान की राह दिखाने की सोच भी रखता है?
   लोक गायक नरेन्द्र सिेह नेगी ने - ‘ओ शिकारी सैबा तू बाध मारि दे, निशाण साधि दे‘ बहुत वर्षों पहले गा दिया। जिसके लिए लिखा उसने सुना या नहीं लेकिन शिक्षक लखपत रावत ने वह सुना और गुना भी। आदिबदरी क्षेत्र में एक दर्जन बच्चों के हथियारे गुलदार का खात्मा कर दिया। ऐसे ही हर जिला, हर क्षेत्र में उन्होंने अपनी जान पर खेलते हुए भी 48 नरभक्षी गुलदार का सफाया किया है। बावजूद इसके कि वन विभाग और शासन- प्रशासन यहां तक कि जनता की ओर से भी उन्हें अपेक्षित सहयोग तक नहीं मिलता। सरकार ने आज तक उन्हें कोई सम्मान नही दिया। अपने वेतन का बडा भाग वे नरभक्षी का पीछा करने-मारने में खर्च कर देते हैं। उन्हें उन बच्चों की चीख सुनाई देती थी जिन्हें गुलदार मार खा जाता था। 
   वो चीख लखपत रावत जैसे सहृदय ही सुन सकते हैं और पेशे से शिक्षक हाथ में एक बडे कारण से बंदूक उठा लेते हैं।
  मित्रों सोशल मीडिया एक बडा हथियार बन कर आया है। लस्त-पस्त मीडिया की चमक धीमी हो रही है और लोगों का विश्वास भी घटा है। तब सोशल मीडिया के मित्रों को अधिक जिम्मेदारी से सोचना पडेगा। आपकी एक पोस्ट, उसका कोई वाक्य या शब्द अनर्थ का कारण भी बन सकता है। जिस प्रकार सैलीब्रिटी को काफी कुछ सोच समझ कर करना या कहना चाहिए उसी प्रकार हमें भी सोच- समझ कर लिखना चाहिए। फेसबुक का ध्येय वाक्य- ‘ह्वट्स् ओन योर माइंड‘ं यदि दिमाग में कुछ है तो अच्छा ही होना चाहिए।
  उत्तराखण्ड के मुद्दे पीछे छूट गये हैं और बद्जुवानी आगे आ गयी है। ठगा-ठगी का मामला बडा है। उत्तराखण्ड को जिससे निजात पानी है। समाधान के रास्ते खोजने हैं। 
                                                                                                                पुरुषोत्तम असनोड़ा

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