उत्तराखण्ड के चार धामों के कपाट बन्द होने के साथ इस वर्ष की चार धाम यात्रा भी सम्पन्न हो गयीं। वर्ष 2013 क्ी प्राकृतिक आपदा के बाद यात्रा को ढर्रे पर लाने के सरकार के भरकस प्रयासों का परिणाम है कि इस बार यात्रियों की संख्या आपदा से पहले के वर्षों की 50 प्रतिशत पहुंच गयी है। आपदा से पहले लगभग 15-16 लाख यात्री गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ व बदरीनाथ धाम पहुंचते थे। इस साल यह आंकडा 7-8 लाख के करीब पहुंच गया है।
सन् 2013 की आपदा के बाद यह कल्पना करना भी मुश्किल हो रहा था कि यात्रा कभी प्रारम्भ भी की जा सकेगी अथवा सुचारु रुप से चलायी जा सकेगी? नेहरु पर्वतारोहण संस्थान के प्राचार्य कर्नल अजय कोठियाल के रुप में केदार धाम को ऐसे विश्वकर्मा मिले जो कम से कम भारत और नही ंतो उत्तराखण्ड की निर्माण सेवाओं में तो संभव सा नही था। आलोचना-प्रत्यालोचना के बीच निश्चित रुप से सरकार ने कमर कसी और यात्रा प्रारम्भ हो गयी। उसे प्रारम्भ करने में कितने घपले-घोटाले रहे होंगे ये अलग विषय है।
चार धाम यात्रा उत्तराखण्ड के लिए कितनी महत्व पूर्ण ये केवल दो साल में यात्रा से जुडे लोग बता सकतेे हैं जिनके चूल्हे बुझने की नौवत थी, बैंकों से लिय उधार नही दिया जा सका था और बच्चों की पढाई-लिखाई, चिकित्सा सुश्रुषा, शादी-विवाह के साथ भविष्य की चिन्ताओं ने सिर उठा लिया था। आज सब कुछ सामान्य हो जाने की बात करना अपने आप को धोखा देना है और उत्तराखण्ड जैसे राज्य में जो त्रिकोण है उसके भरोसे कुछ भी सामान्य हो नही सकता।
इस सब के बावजूद यदि चार धाम यात्रा 50 प्रतिशत तक पहुंच गयी है तो हरीश रावत सरकार के प्रयासों को श्रेय दिया जाना चाहिए, धन्यवाद कर्नल कोठियाल और आपकी टीम।
पुरुषोत्तम असनोड़ा
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