Sunday, November 22, 2015

ठेठ पहाड से- दस्तक, पहाड को संवेदनाओं की दस्तक



  क्ेदार घाटी के अगस्त्यमुनी से प्रकाशित जिजीविषा, संघर्षऔर उत्तराखण्डी आशा- अपेक्षाओं सहित्य और लोक कलाओं के समर्पित सिपाही दीपक बैंजवाल के संपादन की त्रैमासिक पत्रिका जो जुलाई से अगस्त संयुक्तांक है।संपादकीय में मुसीबतों से लडना सिखाती पोखरी की एक बेटी किसी भी पहाडी लडकी की दास्तान हो सकती है।
   पर्वतीय राज्य की अवधारणाओं को कौन लगा रहा है पलीता- शंकरसिंह भाटिया, हिमालय के साथ हिमालयवासियों की चिन्ता जरुरी- जयसिंह रावत, उत्तराखण्ड में जंगली जानवरों का आतंक- दीपक बैंजवाल, उत्तराखण्ड में उम्मीदों की टकटकी- हरीश गुसांई, जडों से जुडने के ग्रामोत्सव व मेरे गांव- मेरी पहचान ग्राम कौथीग- गजेन्द्र रौतेला,अंजली रौतेला विचारोत्तेजक आलेख हैं।
अनिल बहुगुणा का आलेख- छोडी शहरों की शानोओ शौकत-लौट आये पहाड, पौडी के बकरोड गांव के दो बुजर्गों हरिसिंह चैहान व मनोहर सिंह चैहान का  अपने गांव लौट आना और पौडी के वरिष्ठ सर्जन डा महेश चन्द्र भट्ट का अपने पैतृक गांव में नियमित सेवा कार्य उम्मीदों को जगाने वाले आलेख हैं।
   बी मोहन नेगी द्वारा बनाये गये पहाड का दर्द- हेमा उनियाल, दुधबोली-पूरन पंत पथिक, मेरा मुल्क-पारेश्वर गौड, मोल कुं माधो-विजय कुमार मधुर के कविता चित्र पत्रिका को जीवंतता दे रहे हैं।  संयुक्तांक में साहित्य को विशेष स्थान मिला है। कड़वे दोहे-मनोज दरमोडा, एक था मेरा गांव-हरीश थपलियाल, गढवाली कविता पहाड-अंजली गौउ, रैगी अणव्यव हमरि शिबी-माधवसिंह नेगी, हस्ताक्षर में बेटी पढाओ-ओम प्रकाश चमोला, केदारनाथ त्रासदी- उपासना सेमवाल, पहाडों में -गिरीश बैंजवाल, खा गयी किसकी नजर-संजीव कुमार गुप्ता, गणित-नितीश भण्डारी,आन्दोलनकारी  सुशीला भण्डारी का संकलन- ओ हिमालय  कविताऐ ंहैं  तो हमरि मातृभाषा कखि खिचडी भाषा नि बणि जावू- संदीप रावत आलेख और चैथे खम्बे को डारेक्ट यमलोक-विपिन सेमवाल व्यंग हैं।
    ठेठ पहाडों से पहाडी अंदाज की पत्रिका पत्रकारिता का झंडा बुलन्द करने का सार्थक प्रयास है। सात वयों से निरन्तरता बनाने में संपादक को किन मुश्किलों से गुजरना पडा होगा इसे भुक्तभेगी ही जान पायेगा। अंक का हर पक्ष प्रभावशाली  पठनीय और संग्रहणीय है।



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