Thursday, November 26, 2015

आधारभूत सुविधाओं के बिना शीतकालीन तीर्थाटन-पर्यटन कोरी कवायद है


               चार धाम यात्रा को शीतकाल में भी संचालित करने का निर्णय बारहों महिने उत्तराखण्उ में यात्रियों की आवाजाही की परिकल्पनाओं पर आधारित योजना है। गत वर्ष से शुरु की गयी शीतकालीन चार धाम यात्रा  बहुत सफल नही कही जा सकती लेकिन गत वर्ष आपदा के साये में जो  थोडी-बहुत ही सही यात्रा संचालित हुई उसका महत्व है।
             शीतकाल में गंगोत्री की डोली मुखवा, यमनोत्री की खरसाली, केदारनाथ की उखीमठ और बदरीनाथ से कुवेर और लक्ष्मी की पाण्डुकेश्वर व नारायण की ज्योतिर्मठ जोशीमठ पहुंचती हैं और शीतकाल में यहीं धामों में सभी देवी-देवता पूजे जाते हैं। छः माह पूजित स्थानों को शीत काल में यात्रियों के लिए खोलना और दर्शनों की व्यवस्था अच्छा निर्णय है।
            उत्तराखण्ड के ये सभी तीर्थ उच्च हिमालय में विद्यमान हैं और उनके शीत प्रवास भी।तीर्थ यात्रा पर अधिकांश तीसरी-चैथी अवस्था के लोग आते रहे हैं कुछ संख्या नौजवानों की बढी जरुर है लेकिन उनका उस श्रद्धा से दूर-दूर तक संबध नही है जो पारम्परिक तीर्थाटन में अपने जन्म का सुफल करने की कामना लिए लोगों में होती रही है। उत्तराखण्ड के पास शीतकालीन पर्यटन के लिए बहुत विस्तृत क्षेत्र है। जाडों में हिमाच्छादित रहने वाला उत्तराखण्ड का लगभग आधा क्षेत्रफल पर्यटकों का मनमोहनेे को पर्याप्त है। मंसूरी, नैनीताल, ऋषिकेश, हरिद्वार, अल्मोडा, कौसानी, औली, द्यारा बुग्याल, चोपता, वेदनी बुग्याल, पिथौरागढ, मुनस्यारी, चम्पावत, रामगढ आदि-आदि अगणित नाम हैं जो शीतकाल में पर्यटकों की अच्छी आमद के स्रोत हैं, अच्छी सडक, बिजली, पानी, संचार, चिकित्सा जो आम नागरिक के लिए भी उतनी ही आवश्यक है जितनी पर्यटक के लिए 24 घंटे, 365 दिन मिलनी ही चाहिए। हमारा अपना नागरिक मूलभूत सुविधाओं के अभाव रो-घो लेगा लेकिन असुविधाओं का एक बार सामना कर चुका पर्यटक 10 को बतायेगा कि वहीं असुविधाओं का आलम क्या है।
         प्रदेश में निर्माण ऐंजेसियां भ्रष्टाचार की गझ मानी जाती हैं और यही कारण है कि हमारी सडकें, पुल, बिजली, पानी, संचार और यहां तक कि रहने- खाने की व्यवस्थायें भी भरोसे लायक नही हैं। उसके लिए जितनी जिम्मेदार सरकार है उतना ही आम परिवेश भी। यह सच है कि भ्रष्टाचार पूरी तरह सरकार और उसके नुमाइंदों की देन है। लेकिन यात्री और प्र्यटकों के साथ होने वाला व्यवहार तो हम सब का है।  मधुर बोल का कोई मोल नही होता उसके बावजूद बहुत सारे मामलों में हम उत्तराखण्ड के उस मेहमान से कटुता से पेश आते हैं जिसे हम उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बुला रहे हैं। किसी की भी नाजायज बात स्वीकारने का सवाल नही होता। दृढतापूर्वक नाकारी जाना चाहिए।
        सरकार और यात्री व्यवसाय से जुडे हर उस जन को सोचना होगा कि उत्तराखण्ड में प्र्यटन मजबूत आधार हो सकता है लेकिन गांवों में आधारभूत सुविधाओं के जिस टोटे ने गांवों से पलायन के लिए मजबूर किया क्या सरकार वे आधारभूत सुविधायें उपलब्ध कराने जा रही है? यदि नही तो शीतकालीन यात्रा या प्र्यटन जनता को बरगलाने के अलावा कुछ नही है उसमें भी खाने-कमाने के धंधे छुपे हैं।
                                                                                                                               पुरुषोत्तम असनोड़ा

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