नूतन वर्ष 2016 के अपने पहले अंक में रीजनल रिपार्टर नये कलेवर एवं सरोकारों से साक्षात्कार के चिर परिचित तेवर के साथ है। संपादक पुरूषोत्तम असनोड़ा की संपादकीय ‘ये दावे हवा-हवाई’ में राज्य की अपार संभावनाओं के साथ लगातार होते खिलवाड़ की चर्चा हुई है। लीड स्टोरी दो हिस्सों में है। अर्द्धकुंभ विशेषांक पर केंद्रित इस अंक की लीड स्टोरी में हरिद्वार अर्द्धकुंभ के इतिहास तथा कई अन्य तथ्यों के साथ वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोक चंद्र भट्ट की स्टोरी ‘आस्था का पर्व अर्द्धकुंभ’ प्रस्तुत है, तो वरिष्ठ पत्रकार सुशील उपाध्याय की लेखनी ने ‘चुनौतियों का अर्द्धकुंभ’ में चुनौतियों पर फोकस किया है। लीड स्टोरी को आगे बढ़ाते हुए गंगा असनोड़ा थपलियाल ने ‘अधूरी कवायदों के देवप्रयाग’ शीर्षक के साथ उत्तराखंड में सिर्फ घोषणाएं करके उत्तराखंड के देवस्थानों को सिर्फ राजनैतिक हथियार बनाए जाने की ओर इशारा किया है। देवप्रयाग को केंद्र में रखकर इसे स्पष्ट करने की कोशिश इस अंक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है।
लीड स्टोरी का ही हिस्सा बने ‘देवप्रयाग’ पर इस अंक में सबसे अधिक सामग्री शामिल की गई है। वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर जोशी ने ‘कुंभ क्षेत्र में शामिल हुआ देवप्रयाग’, राजेंद्र कुमार शर्मा ने ‘देवप्रयागः सुदर्शन क्षेत्र’, चर्चित इतिहासविद् डाॅ.शिव प्रसाद नैथानी ने ‘देवप्रयाग तीर्थ की पौराणिकता और इतिहास’, डाॅ.सुरेखा डंगवाल ने ‘देवप्रयागी समाजः संस्कृति और परंपराओं का वाहक’, युवा पत्रकार कपिल पंवार ने ‘सरकारी उदासीनता पर व्यक्तिगत प्रयास भारी’, जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’ ने ‘देवप्रयाग के आस-पास’, बालकृष्ण बहुगुणा ने ‘राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान का 12वां परिसर देवप्रयाग में’, राजेश भट्ट ने ‘डेढ़ सौ वर्षों का इतिहास समेटे है संस्कृत महाविद्यालय’ आलेख लिखे हैं, जिसमें देवप्रयाग के इतिहास, भूगोल, पौराणिकता, प्रमुख ऐतिहासिक मंदिरों, उपलब्धियों समेत उन सभी संभावनाओं का जिक्र हुआ है, जिस पर राज्य बनने के 15 वर्षों में नजर जाती, तो देवप्रयाग का कायाकल्प हो सकता था। देवप्रयाग जैसे सैंकड़ों स्थान हैं, जिन पर सरकार की नजर नहीं पड़ती।
स्थायी स्तंभ मंथन के तहत चर्चित स्तंभ लेखक डाॅ.भरत झुनझुनवाला का ‘कहां लुप्त हो गई ग्रोथ’, खबरों की खबर में एल मोहन का ‘बी.मोहन व स्व.जौनसारी को सम्मान’, राजेंद्र रावत ‘राजू’ की याद में व्याख्यानमाला, भाजपा में भविष्य तलाशते दिवाकर, सुरेंद्र भंडारी को स्व.चंद्रसिंह यायावर सम्मान, पंकज पांडेय का ‘नाजुक हालातों में कैसे सुधरेगा स्वास्थ्य’, श्रवण सेमवाल का ‘अब्दुल कलाम, तुम्हें सलाम’, शीना उपाध्याय का ‘यूनिवर्सिटी यूथ क्लब ने मनाया स्थापना दिवस’ शामिल हैं। नगरनामा में एल.मोहन कोठियाल ने ‘कालौडांडा से लैंसडौन’ में लैंसडौन नगर पर वृहद रूप से फोकस किया है। स्वास्थ्य परिचर्चा में डा.के.के.गुप्ता ‘जागरूकता से स्वस्थ रखें दांत’ कह रहें हैं, तो न्यू मीडिया गुरू जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’ ‘न्यू मीडिया तकनीकी में आजमाएं हाथ’ का सुझाव दे रहे हैं। बाल मन की उड़ान में बाल कविता समेत राइका दूनागिरी के कक्षा छह के विद्यार्थियों द्वारा तैयार किया गया कोलाज, द हार्डलैंड पब्लिक स्कूल हल्द्वानी की छात्रा हर्षिता रौतेला तथा सेंट थेरेसास श्रीनगर की छात्रा मैत्री पैन्यूली की पेंटिंग भी शामिल हैं। चर्चित स्तंभकार और व्यंग्यकार उर्मिल कुमार थपलियाल ने ‘बकमबम’ स्तंभ के साथ अपने ही अंदाज में ‘सन् 15 को सलाम’ ठोका है, तो जानें अपने राज्य को में जीएस नेगी उत्तराखंड के बांधों की जानकारी दे रहे हैं। बांधों की जानकारी से जुड़ी श्रृंखला आगे भी रहेगी।
संपादकीय सहयोगी विपिन बनियाल की रिपोर्ट ‘स्मार्ट सिटी की डर्टी पाॅलीटिक्स’ में स्मार्ट सिटी की राजनीति और चल रहे आंदोलन पर विस्तार से चर्चा है, तो अनूप नौटियाल के ‘सोलहवां सालः कुछ हरा हो जाए’ में सरकारी नीतियों के अभाव में इस राज्य के संसाधनों से होते खिलवाड़ को बता रहे हैं। पत्रकार सुधीर राठौर ने ‘शांत माहौल को अशांत करने की कोशिश’ में राईगड़सारी में हुई घटना पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की है, बिपिन सेमवाल ने ‘एवरेस्ट फतह को बढ़ेंगे अब नूतन के कदम’ में नूतन की सफलता पर रिपोर्ट दी है। संपादकीय सहयोगी सीताराम बहुगुणा ने ‘अजय पर विजय दिलाने का जिम्मा’ में अजय भट्ट को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने पर गंभीर राजनीतिक विश्लेषण किया है।
इस अंक के अन्य प्रमुख आलेखों में शिक्षा व्यवस्था की प्रत्येक कमजोर तह तक पहुंचता प्रीतम अपच्छयांण का ‘उत्तराखंड में शिक्षा विभाग’ शामिल है, तो चर्चित कहानी लेखक बल्लभ डोभाल की कहानी ‘पलकों पर बसा गांव’ भी शामिल है। बीडी असनोड़ा का रोचक आलेख ‘बागेश्वर के गरूड़ से चलकर रियो डि जेनेरो में दौड़ेगा नितिन’ प्रेरणादायी है। सीताराम बहुगुणा ने फतेह सिंह रावत की पुस्तक ‘गीता गढ़वाली काव्य रूप मां’ की समीक्षा प्रस्तुत की है, तो गढ़वाली के मूर्धन्य लेखक नरेंद्र कठैत के खंडकाव्य ‘पाणि’ की कविता भी इस अंक में शामिल है-
‘भगीरथ जी!, हमुन् सूणी
तुम स्वर्ग बिटि, गंगा लयां।।
इंजीनैर से लेकी, ठ्यकदार तक
सबि जगामा, तुमी रयान
‘भगीरथ जी!, हमुन् सूणी
तुम स्वर्ग बिटि, गंगा लयां।।
इंजीनैर से लेकी, ठ्यकदार तक
सबि जगामा, तुमी रयान
Ganga Asnora Thapaliyal
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