Sunday, December 27, 2015

आपदा घोटालों की निष्पक्ष जांच हो

           मुुख्यमंत्री हरीश रावत ने आपदा में 1509 करोड रु की केन्द्रीय सहायता का हिसाब न मिलने पर सेवानिवृत जज से जांच कराने की घोषणा का स्वागत किया जाना चाहिए। उत्तराखण्ड में सन् 2013 में आयी आपदा जितनी अभूतपूर्व थी उत्तराखण्ड की राजनीति और नौकरशाही को देखते हुए उसमें घोटालों की संभावना उतनी ही प्रवल रहीं। पहली किश्त के आरोपों को विपक्ष उतनी गम्भीरता से नही सामने ला पाया और सरकार उसे बहुत आसानी से पचा गयी।
   अब जो केन्द्रीय सहायता और राज्य सरकार के हिसाब-किताब में  1509 करोड रु का अन्तर है उस पर मुख्य मंत्री की उक्त प्रतिक्रिया का स्वागत करते हुए अंजाम तक पहुंचने की मांग की जानी चाहिए। हम आशा करेंगे कि घोटाले की जांच सही और तह तक पहुंचने वाली हो और कही से कहीं तक ये न लगे कि जांच समिति किन्ही तथ्यों को नजरअंदाज कर रही है।
   हमने वीरेन्द्र दीक्षित जैसे आयोग देख लिए हैं जो राजधानी स्थल चयन के नाम पर गैरसैंण को नकारने के एकसूत्री फार्मूले पर काम कर रहे थे। ताज्जुब तो ये है कि सरकार की कमी को उजागर करने के नैतिक कर्तव्य के विपक्ष ने पहले और दूसरे किश्त के आरोप नही लाये, इन्हें सामने लाने का श्रेय जन सूचना अधिकार कानून को है और आर अी आई कार्यकर्ता लोक सूचना के आधार पर आपदा घोटालों को सामने लाये हैं।
  भाजपा जहां कथित घोटाले की सीबीआई जांच की मांग कर रही है वही मुख्य मंत्री ने आलोच्य राशि केन्द्र द्वारा न दिए जाने का आरोप मढ दिया है इससे यह सांप-नेवले की लडाई बन गयी है और असली मुद्दा दब जाने की संभावना बन रही है।
   आर टी आई एक्टीविस्ट और  उत्तराखण्ड की जुझारु शक्तियों को पुरजोर तरीके से जांच और उसके परिणाम की मांग उठानी चाहिए। उत्तराखण्ड भाजपा- कांग्रेस का जरखरीद प्रदेश नही है और 15 साल राज्य पर भारी पडे हैं।

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