Sunday, December 6, 2015

विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र का क्या होगा, परिकल्पनाओं पर पलीता पोतने की तैयारी तो नहीं?


गैरसैंण,
             आठवें दशक में स्थापित भराडीसैंण के विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र पर विधान सभा की छाया(प्रेत) लगने की पूरी संभावना है। प्रक्षेत्र की ही जमीन पर बन रहे विधान सभा और विधायक, मंत्री, अधिकारी हाॅस्टल के बाद प्रक्षेत्र का अस्तित्व खतरे में बताया जा रहा है और वहां आवासीय कालौनी बनाये जाने पर विचार हो रहा है। प्रक्षेत्र को कहां स्थान्तरित किया जायेगा इसकी पुख्ता जानकारी नहीं है अलबत्ता मुख्य मंत्री के प्रधान मुख्य सचिव राकेश शर्मा प्रक्षेत्र को उसी की भूमि में चैरडाखाल की ओर शिफ्ट करने की बात कहते हैं।
    विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र के अधिकारी स्वयं असमंजस में हैं और केन्द्र सरकार से चारा भंण्डारण हेतु मिली धनराशि का उपयोग नही कर पा रहे हैं। 50 लाख रु की राशि से भण्डारण कक्षों का निर्माण होना था।
   विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र उप्र में मुख्य मंत्री रहते स्व हेमवती नन्दन बहुगुणा की पशुपालन के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी योजना थी। परवाडी, सारकोट, चोरडा, सिराणा व मरोडा वन पंचायतों की 500 एकड भूमि में स्थापित परियोजना को 1978 में कार्य रुप दिया जा सका। तत्कालीन पर्वतीय विकास मंत्री डा शिवानन्द नौटियाल ने परियोजना की स्थापना में काफी रुचि लेकर स्थापना में योगदान किया था।
 सन् 1980 में डेनमार्क से 20 जर्सी गाय और दो जर्सी सांड आयत हुए और स्थानीय गाय के साथ शंकर नस्ल पैदा कर उसे स्थानीय और बहुतायत होने पर अंयत्र वितरित करने का उद्देश्य लिया गया। प्रारम्भिक वर्षों में परियोजना सफलता से चलती रही और शंकर नस्ल (क्रास व्रीड) काश्तकारों को दी गयी और ग्राम स्तर पर पशुपालन विभग द्वारा सांड दिए गये।
  जैसा कि सरकारी योजनाओं का हश्र होता है सरकार की उपेक्षा, स्टाफ की कमी और लम्बे समय तक प्रभार में रहने से प्रक्षेत्र का प्रदर्शन प्रभावित हुआ। स्थिति तो यह हो गयी कि 200 के गौवंश की जगह प्रक्षेत्र में 350 तक गौवंश को रखना प्रक्षेत्र कर्मियों की मजबूरी हो गया। वर्तमान परियोजना निदेशक डा बर्तवाल ने नियुक्ति के साथ ही डेयरी पर भी ध्यान केन्द्रित किया और वर्तमान में 150 ली दूध का उत्पादन अच्छी संभावना दिखता है।
   जिस परियोजना की जमीन पर विधान सभा का निर्माण हुआ कि उसी को बेदखल करना न्याय संगत है? ये सही है कि विधान सभा बडा मसला है और उसके लिए 100 हेक्टेयर भूमि दी जा चुकी है। अफसरशाही प्रक्षेत्र की वर्तमान स्थिति के इतर बसाने में अनावश्यक धन की बरबादी पर उतारु है। यदि आवासीय कालोनी बननी है तो उसे उस स्थान पर क्यों नही बनाया जा सकता जहां प्रक्षेत्र को स्थान्तरित करने की बात हो रही है।  भराडीसैंण दूधातोली श्रृंखला  क्षेत्र है जहां से 5 सदानीरा नदियां निकलती हैं।  उत्तराखण्ड की स्थायी राजधानी के न्यून आवश्यक निर्माण के अलावा पर्यावरण के महत्वपूर्ण क्षेत्र में अधिक निर्माण फलदायी नही होंगे। शायद उत्तराखण्डी परिकल्पनाओं को 15 सालों में पलीता लगाने वाली नौकरशाही, नेता और माफिया भी यही चाहती होगी।      
पुरुषोत्तम असनोड़ा


No comments: